प्लास्टिक बैग के निर्माण और बिक्री पर प्रतिबंध

Uday India Hindi 3-9 Jan 2016-120वीं सदी में दुनिया भर की दुकानों, राशन दुकानों, दवा की दुकानों और अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में सामानों के साथ मुफ्त में या मामूली कीमत पर दिए जाने वाले प्लास्टिक थैलों का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ा। हालाँकि, 21वीं सदी की शुरुआत के साथ ही इन थैलों की किस्मत या सर्वोच्चता पर तेजी से ग्रहण लगा और वे ग्राहकों के साथ-साथ विक्रेताओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण साधन नहीं रह गए। प्लास्टिक कैरियर बैग और एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले थैलों को लेकर किए गए नए प्रयोगों ने खरीदारी के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया। इन प्लास्टिक के थैलों को खरीदारी का सामान घर ले जाने और उन्हें सहेज कर रखने के लिहाज से उपयोगी, भरोसेमंद और कम खर्च वाला पाया गया। उन्हें न केवल टिकाऊ, भारी सामान ले जाने के उपयुक्त, स्वच्छ, वाटरप्रूफ और आकर्षक माना गया बल्कि उन पर छपे अलग-अलग प्रकार के लोगो और स्टोर के नाम के चलते भी ग्राहकों ने उन्हें अपने मन में बसा लिया।

एक भारतीय गृहणी के लिए उस बैग के अनगिनत इस्तेमाल थे, जैसे पति को ऑफिस के लिए उस बैग में लंच रख कर देने से लेकर, अपने किसी नए और शानदार व्यंजन को, अपने पसंदीदा गजल गायक की सीडी को या चैरिटी बाजार में खरीदे गए आलू छीलने वाले को या फिर विदेश में छुट्टी मनाने के दौरान अपनी दोस्त के लिए खरीदे गए वहाँ के खास तोहफे को कुछ ब्लॉक दूर रह रही दोस्त तक भिजवाने या धोबी को धुलाई के लिए गंदे कपड़े भिजवाने तक के लिए उनका प्रयोग किया जा सकता था। घर पर कोई भी सामान आपको काम के लायक दिख गया और मन में ख्याल आया कि उसे संभाल कर रख दें, तो भी वह बेचारा बैग आपकी सेवा में हाजिर हो जाता है। अगर आपको यह महसूस हो कि कोई चीज आगे काम आ सकती है और आप उसे जल्दबाजी में फेंकना नहीं चाहते, तो भी फिक्र करने की ज़रूरत नहीं। उसे बस किसी प्लास्टिक बैग में डाल दीजिए जो आपके आस-पास कहीं न कहीं पड़ा दिख जाएगा और फिर जब जी चाहे फुर्सत के पलों में आप अपनी सहेजी गई चीज को तसल्ली से देख सकते हैं।

लंबा समय गुजर जाने के बाद, जब आप किसी आलस भरी दोपहर में अलमारी खोलते हैं और इन साफ-सुथरे भरोसेमंद थैलों में कभी संभाल कर रखी गई इधर-उधर की चीजों को पाते हैं, तो आपके अंदर का बचपन इस उम्मीद में छलाँग लगाने लगता है कि शायद कोई गड़ा खजाना मिल जाए या कोई ऐसा उपयोगी सामान जिसकी आपको न जाने कब से तलाश थी! आप बैग खोलते हैं और पाते हैं कि आपके बच्चे ने कार्डबोर्ड से कभी एक फोटो फ्रेम तैयार किया था जिसमें एक प्यारा सा जन्मदिन का ग्रीटिंग मढ़ा गया था। क्या बात है! यह सोचते हुए आप बरसों पहले की यादों में खो जाते हैं और दोपहर का वह समय बीते दिनों की सुखद बातों को याद कर बीत जाता है! वह चीज जो आपको अतीत की सुखद यादों का एहसास कराती है उसे इसी बेचारे और संकोची बैग ने संभाल कर रखा था। इस्तेमाल के लिए सदैव तैयार रहने वाला यह बैग आए दिन काम आने वाले एक साधन के तौर पर हर घर का एक हिस्सा बन गया और एक वरदान माना जाने लगा जिसने जीवन को आसान बना दिया। इसके अलावा, राशन के प्लास्टिक बैग को तैयार करने में पेपर के थैले बनाने की तुलना में 70% कम ऊर्जा लगती है। इस कारण, प्लास्टिक के बैग संसाधन की दृष्टि से भी उपयोगी हैं, लगभग मुफ्त में मिल जाते हैं और इतने इस्तेमाल और लंबे जीवन के बावजूद इनकी देखरेख में भी कोई खर्च नहीं लगता। हालाँकि,  इस चैंपियन बैग की बहुमुखी प्रतिभा को एक दूसरा पहलू जबरदस्त नुकसान पहुँचाता है।

बहुमुखी प्रतिभा वाले प्लास्टिक बैग का दूसरा पहलू

अपने मूल उद्देश्य, या फिर गृहणियों की सोच के अनुसार, अनेकानेक उद्देश्यों को  पूरा करने के बाद, सबसे बड़ी समस्या इस प्लास्टिक बैग के निपटारे को लेकर खड़ी हो जाती है। इसका जीवन अनंत और कभी न नष्ट होने वाला लगता है। कचरा फैलाने वाले प्लास्टिक के इन थैलों को बिना समझे-बूझे यहाँ-वहाँ और कहीं भी फेंक कर अराजकता का माहौल बना देते हैं। बिखरे पड़े प्लास्टिक के थैलों की वजह से सार्वजनिक स्थल देखने लायक नहीं रह जाते, खास तौर पर एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले उने थैलों के कारण जिन्हें दवा बेचने वाले, फल-सब्जी या अनेक प्रकार के सामान बेचने वाले फेंक देते हैं और वे हवा के साथ चारों तरफ उड़ते नज़र आते हैं।  कचरे के ढेर पर फेंक दिए जाने वाले ये थैले हवा के हल्के से झोंके के साथ उड़ने लगते हैं, जिसका एक बड़ा कारण बनाए जाने के दौरान इसे दिया जाने वाला वायु-गति-विज्ञान संबंधी गुण है, हालाँकि ऐसा किसी मंशा से नहीं किया जाता है। इस प्रकार अपनी निरुद्देश्य उड़ान के क्रम में वे कभी किसी बाइक या स्कूटर चलाने वाले के चेहरे से भी लिपट सकते हैं, जिसके कारण वह अपना संतुलन खो सकता है, और मुमकिन है कि इसका नतीजा किसी जबरदस्त हादसे के तौर पर सामने आ जाए। इससे राह चलते लोग भी नहीं बच पाते। तूफान आने पर इधर-उधर बिखरे थैले उन से चिपक जाते हैं और दूर हटने का नाम नहीं लेते।

इस प्रकार, हर जगह मौजूद इन प्लास्टिक थैलों के प्रकोप से आम लोगों को दोचार होना पड़ता है तथा इसके अवगुण अनेक रूप में सामने आते हैं। लापरवाही से फेंके गए प्लास्टिक बैग नालों को जाम कर देते हैं या नालियों में फंस जाते हैं, जिसके कारण भारी बारिश होने पर जलप्लावन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। बंद नाले और जाम नालियों के कारण मलेरिया फैलाने वाले मच्छर पैदा होते हैं। ऐसी विचित्र और परेशानी पैदा करने वाली घटनाएँ भी हो चुकी हैं जिनमें शिशुओं और बच्चों ने उत्सुकतावश या खेल-खेल में चेहरे पर प्लास्टिक बैग पहन लिया, जिससे दम घुटने से उनकी मौत तक हो गई। आवारा पशुओं को उन फेंके गए प्लास्टिक थैलों को चबाते आम तौर पर देखा जाता है, जिन थैलों में खाने का सामान रखा गया था और उन्हें कचरे के ढेर में फेंक दिया गया। उन बेचारे जानवरों को गंभीर बीमारी हो जाती है क्योकि उनके पाचन तंत्र में पहुँचा प्लास्टिक शरीर से बाहर नहीं निकल पाता, और फिर उसे ऑपरेशन के ज़रिए ही निकाला जाता है। रिपोर्ट बताते हैं कि भारत में हर दिन लगभग 20 गायों की मौत प्लास्टिक बैग खाने के कारण होती है। पशुचिकित्सक अक्सर पशुओं पर बिना किसी मंशा के ही होने वाले इस अत्याचार को मूक दर्शक बनकर देखते रह जाते हैं। ऐसा उन लोगों की वजह से होता है जो एक नागरिक होने की जिम्मेदारी नहीं निभाते और लापरवाही से प्लास्टिक के थैले यहाँ-वहाँ फेंक देते हैं।Uday India Hindi 3-9 Jan 2016-2

पर्यापरण को खतरा

प्लास्टिक के थैले अपनी जाल में चिड़ियाँ को भी फंसा लेते हैं। पक्षियों को उड़कर पेड़ पर आए प्लास्टिक थैलों को देखकर भ्रम होता है कि वे कोई फल हैं और वे उन्हें मजे से खाते हैं जिसके भयंकर परिणाम होते हैं। यह थैले जब नदियों और समुद्र तक पहुँच जाते हैं, तो जलजीवों पर भी एक बड़ा खतरा पैदा कर देते हैं। यूएन पर्यावरण कार्यक्रम के मुताबिक, वैज्ञानिकों का अनुमान है कि समुद्र के प्रत्येक वर्ग मील पर लगभग 46,000 प्लास्टिक के हिस्से तैरते पाए जाते हैं। दुनिया भर में निर्मित प्लास्टिक का 10% समुद्र तक पहुँच जाता है, जिनमें से 70% समुद्र की सतह पर आ जाता है, जहाँ वह किसी भी हाल में कम से कम 500 वर्षों तक समाप्त नहीं होगा। महासागर संरक्षण की वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय तट सफाई एजेंसी दुनिया भर में समुद्र में फेंकी जाने वाली दस सबसे अधिक वस्तुओं में निरंतर रूप से प्लास्टिक के कचरे को शामिल करती रही है। प्लास्टिक के थैलों के नष्ट होने की निराशाजनक और बेहद सुस्त रफ्तार उन्हें बरसों तक महासागर में इधर-उधर तैराती रहती है।

समुद्री कछुए, सील और व्हेल जैसे समुद्री जीव, चमकदार प्लास्टिक थैलों को जेली फिश समझने की भूल कर देते हैं और उन्हें निकल जाते हैं, जिसके भयंकर दुष्परिणाम सामने आते हैं। प्रकृति के लिए विश्वव्यापी निधि के एक आकलन के अनुसार, प्रति वर्ष 100,000 से अधिक व्हेल, सील और कछुओं की मौत प्लास्टिक बैग खाने या उनमें फंसने के कारण हो जाती है। मीडिया ने पिछले कुछ वर्षों में ऐसी अनेक घटनाओं की खबर दी है जिनमें प्लास्टिक के थैले को जेली फिश समझ कर खा लेने के बाद, व्हेल खाना-पीना छोड़ देती है और उसकी मौत हो जाती है। व्हेल प्लास्टिक के थैले को नहीं पचा सकती। यही नहीं, उनके केमिकल आंतरिक अंगों पर नकारात्मक रूप से प्रतिक्रिया करते हैं। वर्जिन द्वीप संरक्षण समिति की ओर से 4 जनवरी, 2015 में जारी एक रिपोर्ट का उल्लेख करें, तो साफ हो जाएगा कि प्लास्टिक के थैलों (तथा अन्य प्लास्टिक कचरे) ने महासागर को किस हद तक दूषित कर दिया है:
“हाल ही के एक अमेरिकी वैज्ञानिक लेख ने बताया है कि दुनिया में प्रति वर्ष 260 मिलियन टन प्लास्टिक तैयार होता है, और उसमें से अधिकांश महासागरों तक पहुँच जाता है। हम प्लास्टिक शॉपिंग बैग का प्रयोग न कर कुछ मदद कर सकते हैं।”

सरकारी अधिकारियों की मुश्किल

सरकारी अधिकारी अक्सर समझ नहीं पाते कि प्लास्टिक कचरे का निपटारा कैसे किया जाए। मनुष्य के आधुनिक जीवन में जिस प्लास्टिक बैग को वरदान समझा गया, वही अब एक अभिषाप बन गया है। यह थैले पॉलिथीन से बने होते हैं जिसमें प्राकृतिक गैस और तेल का इस्तेमाल किया जाता है। बड़े पैमाने पर प्लास्टिक के थैलों के निर्माण में प्राकृतिक गैस और तेल जैसे गैर पुन: प्रयोज्य ऊर्जा स्रोतों को निकालने को लेकर भारी दबाव रहता है। वॉल स्ट्रीट जर्नल के एक अनुमान के अनुसार, केवल अमेरिका में प्रति वर्ष 100 बिलियन प्लास्टिक बैग इस्तेमाल किए जाते हैं और फेंक दिए जाते हैं, जिन्हें तैयार करने के लिए 12 मिलियन बैरल तेल की आवश्यकता होती है। चाइन ट्रेड न्यूज के अनुसार, उनके देश में प्रति दिन तीन बिलियन प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल किया जाता है। अर्थ पॉलिसी इंस्टीच्यूट के अनुसार, दुनिया भर में हर मिनट करीब दो मिलियन प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल किया जाता है और एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले तीन ट्रिलियन प्लास्टिक बैग हर साल इस्तेमाल में लाए जाते हैं।

स्वाभाविक रूप से न सड़ने वाला

यही नहीं, प्लास्टिक बैग सड़ते भी नहीं। ये थैले रि-साइकिल किए जा सकते हैं, जो पुराने थैलों के निपटारे का सबसे सुरक्षित और आदर्श तरीका होता है, लेकिन सच यही है कि वे खाली जमीन को भरने के लिए फेंक दिए जाते हैं जहाँ सड़ने में उन्हें बरसों लग जाते हैं। इस कारण, पर्यावरणविदों के लिए भी यह बहुत बड़ा सिरदर्द साबित होते हैं। प्रति वर्ष लगभग 3,960,000 टन प्लास्टिक बैग, जो थैले और लपेटने के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं, उनमें से 90% फेंक दिए जाते हैं। प्लास्टिक का जब विघटन होता है, तब वह जैविक रूप से नहीं सड़ता बल्कि फोटोडिग्रेड होता है, मतलब उसके तत्व छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट जाते हैं और तेजी से विषाक्त पदार्थों को सोख लेते हैं। फिर वे मिट्टी, जलस्रोतों, और उनके संपर्क में आने वाले जानवरों को अपनी चपेट में लेते हैं। यह जानकारी अर्थ911 ने जुटाई है। यह एक ऐसा अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो लोगों को जानकारी देकर धरती की रक्षा करने के साथ ही उन्हें उनका कचरा कम करने में मदद करता है।

बचने का बस एक ही रास्ता

प्लास्टिक के थैले ग्रेड 2 और ग्रेड 4 प्लास्टिक से बने होते हैं। आसानी से रि-साइकिल होने के कारण, इन्हें अक्सर ठोस लट्ठे में बदल दिया जाता है जिनसे अनेक प्रकार के सामान बनाए जा सकते हैं। अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय को जब तक किसी सही उपाय नहीं मिल जाता, तब तक इन फेंके गए प्लास्टिक थैलों को रि-साइकिल करना ही इनके निपटारे का एकमात्र प्रभावी उपाय है। हालाँकि, बीबीसी और सीएनएन का अनुमान है कि कुल निर्मित थैलों में से सिर्फ 3-5% बैग ही रि-साइकिल किए जाते हैं।

दुनिया भर में स्थिति  

जैविक रूप से गैर-सड़नशील प्लास्टिक थैलों की समस्या से पूरी दुनिया परेशान है। इस स्थिति से निपटने के लिए तमाम देश समस्या की गंभीरता को देखते हुए मुनासिब कदम उठा रहे हैं। बांग्लादेश, रवांडा, चीन, ताइवान और मैसेडोनिया ने हल्के वजन वाले थैलों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। कुछ अन्य देश भी उनकी राह पर चल पड़े हैं और ग्राहकों से हल्के थैलों पर पैसे वसूल रहे हैं या उन्हें बेचने वाले दुकानों पर टैक्स लगा रहे हैं। अमेरिका में, पिछले साल कैलिफोर्निया पहला प्रांत बना जिसने प्लास्टिक थैलों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी। अन्यथा, ऐसे कुछ ही शहर और देश हैं जिन्होंने उनके प्रयोग को अवैध करार दिया है।

भारत में फिलहाल प्लास्टिक के थैलों की स्थिति

रि-साइकिलिंग की सुविधा व्यावहारिक रूप से कहीं भी न होने के कारण, भारत ने 20 माइक्रोन से पतले प्लास्टिक थैलों पर पाबंदी लगा दी है। गोवा और दिल्ली जैसे राज्यों तथा मुंबई शहर में भी अलग-अलग किस्म के प्लास्टिक थैलों पर बैन है। इस प्रकार की पाबंदी को लेकर कानून तो बन जाते हैं लेकिन उन्हें लागू करना आसान नहीं होता।

सरकारों को क्या करना चाहिए?

ग्राहकों के दृष्टिकोण से देखें तो भारत में फिलहाल प्लास्टिक बैग के विकल्पों के तौर पर कागज के या जूट के थैले उपलब्ध हैं। चूँकि इस प्रकार के थैलों के निर्माण और लाने ले जाने का खर्च प्लास्टिक बैग की तुलना में बहुत अधिक है, इस कारण यह उनका चलन में आना और प्लास्टिक के थैलों के एकाधिकार को समाप्त कर देना संभव नहीं है। फिर भी, एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले प्लास्टिक के थैलों के दिन व्यावहारिक तौर पर लद गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से शुरु किए गए स्वच्छ भारत अभियान के कारण इनके प्रयोग पर पाबंदी लगाने की आवश्यकता पर विचार किया जा रहा है। हालाँकि, इस बात की आवश्यकता कहीं अधिक महसूस की जा रही है कि केंद्र और राज्य सरकारों के साथ ही गैर-सरकारी संगठन, तथा दबाव बनाने वाले समूह जैसे छात्र समुदाय, खिलाड़ी, कलाकार, मीडिया और अन्य लोगों द्वारा देश की जनता के बीच इस बात को लेकर जागरुकता पैदा करें कि प्लास्टिक के शॉपिंग बैग के लगातार इस्तेमाल से कितनी बड़ी समस्या खड़ी होती है। पर्यावरण, स्वच्छता, पक्षियों, पशुओं और समुद्री जीवों के जीवन के साथ ही नदियों तथा अन्य जलस्रोतों को कितना नुकसान पहुँचता है।

लोगों को यह समझना होगा कि पर्यावरण का प्रदूषण एक टिक-टिक करते टाइम बम के समान है और वक्त आ गया है जब प्लास्टिक के थैलों पर बैन लगाने पर बहस करने की बजाए कुछ ठोस किया जाए। जहाँ तक सरकार की बात है, तो उसे सभी प्रकार के प्लास्टिक शॉपिंग बैग पर पाबंदी लगा देनी चाहिए। यही नहीं, उस पाबंदी का सख्ती से पालन भी कराना चाहिए। इस समस्या से उसके स्रोत तक जाकर ही निपटा जाना चाहिए। उत्पादन इकाई बंद हो तो हो जाए लेकिन इन थैलों का उत्पादन नहीं होना चाहिए। उल्लंघन करने वाली कंपनियों और स्टोर्स पर भारी जुर्माना लगाया जाए तथा बार-बार गलती करने वालों को कठोर दंड दिया जाना चाहिए। कानून बने तो उसमें प्रदूषण नियंत्रण का उल्लंघन करने पर सजा के भी प्रावधान हों। इसके साथ ही, सरकार को रि-साइकिलिंग इकाई की स्थापना के प्रावधान बनाने चाहए जहाँ लोग अपने पुराने प्लास्टिक के थैले रि-साइकिल करा सकें। बड़े स्टोर्स के लिए यह अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए कि उनकी अपनी रि-साइकिलिंग इकाई हो जहाँ ग्राहकों को अपने पुराने थैले जमा कराने के लिए उत्साहित किया जाए। सरकार चाहे तो हर उस बिंदु पर शुल्क लगाए जहाँ किसी नए प्लास्टिक बैग की बिक्री होती है और इस प्रकार इकट्ठा किया गया धन एक पर्यावरण कोष बनाने का काम आ सकता है जो पर्यावरण के प्रदूषण से लड़ने में मदद करे। इन सबसे कहीं अधिक, प्लास्टिक उद्योग को निर्देश दिए जाने चाहिए कि वे प्लास्टिक कचरे के निपटारे के प्रति जवाबदेह बनें और प्लास्टिक के कचरे को इकट्ठा करने के लिए एक समर्पित सफाई बल का गठन करें। इस समस्या से निपटने की शुरुआत प्लास्टिक शॉपिंग बैग के निर्माण, बिक्री और इस्तेमाल पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने से ही हो सकती है।

(The article was published in weekly Hindi magazine Uday India in January 3-9, 2016 edition on page 36-39) http://www.udayindia.in/hindi/?p=5493

One thought on “प्लास्टिक बैग के निर्माण और बिक्री पर प्रतिबंध

  1. nike free 4.0 dame sort code

    You’re so interesting! I do not believe I have read through something like that before. So good to find someone with some genuine thoughts on this subject matter. Seriously.. thank you for starting this up. This site is something that’s needed on the internet, someone with a bit of originality!

    Reply

Leave a Reply to nike free 4.0 dame sort code Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *