केरल में साम्यवाद, और क्यों लोगों को बीजेपी सरकार के लिए वोट करना चाहिए

Image for Communism in Kerala_3यदि केरल में किसी बाहरी व्यक्ति को यह देखकर हैरत होती हो कि एक विदेश विचारधारा जो भारतीय राजनीति में बाहर से आई और अब वहाँ जड़ें जमा कर बैठी है, तो उसकी हैरानी का कारण बताने के लिए सिर्फ यही कहा जा सकता है कि शायद उसे ईश्वर के अपने देश की ज़मीनी हकीकत की जानकारी नहीं है। केरल की धरती सोने उगलने वाली है। यहाँ भू-स्वामियों और कृषि श्रमिकों के बीच स्पष्ट विभाजन है। यहाँ का समाज भी देश के किसी अन्य राज्य के समान ही जाति और संप्रदाय के आधार पर बँटा हुआ है। हालाँकि, अन्य राज्यों की तुलना में केरल ने शिक्षा के महत्व को बहुत पहले समझ लिया था। एक के बाद एक सत्ता में आने वाली सरकारों ने विकास के लिहाज से शिक्षा पर विशेष बल दिया। खास तौर पर महिलाओं और समाज के उन वंचित वर्गों के बीच इसका प्रचार-प्रसार किया गया जो पूरी तरह से कृषि संबंधी कार्यों पर निर्भर थे और अक्सर उच्च जाति के भू-स्वामियों की ओर किए जाने वाले अत्याचारों और शोषण का शिकार हुआ करते था।

इसका परिणाम यह हुआ कि आज केरल न केवल साक्षरता की बहुत ऊँची दर का दम भरता है, बल्कि उसके समान ही अन्य प्रभावशाली सामाजिक सूचकांकों जैसे निम्न जन्म दर, निम्न शिशु मृत्यु दर, उच्च जीवन प्रत्याशा, संपत्ति में महिलाओं के उत्तराधिकार, इत्यादि पर भी उसे गर्व है। चूँकि केरल में वर्ग-संघर्ष के लिए एक उपयुक्त माहौल था, इस कारण देश की स्वतंत्रता के तुरंत बाद ही वहाँ साम्यवाद का उदय हुआ। कम्युनिस्टों ने बिना समय गँवाए शिक्षा के प्रचार-प्रसार से लोगों में पैदा हुई उच्च राजनीतिक चेतना का लाभ उठाया। धार्मिक और जातीय आधार पर बँटवारों के समाप्त होने से पहले ही, वे चुनावी राजनीति में कूद गए। उन्होंने किसानों का मुद्दा उठाया और भूमि सुधारों की वकालत की। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस (आईएनसी) की पूँजीवादी नीतियों और समाज की पारंपरिक बुर्जुआ सोच को चनौती दी।

साम्यवाद और चुनावी राजनीति

1957 में, भाषाई आधार पर पुनर्गठन के तुरंत बाद, केरल के भारत का पहला ऐसा राज्य बना जहाँ लोकतांत्रिक प्रक्रिया से देश में चुनी हुई कम्युनिस्ट सरकार बनी जबकि विश्व में सैन मारिनो के बाद दूसरी ऐसी सरकार बनी। सैन मारिनो दुनिया का सबसे छोटा और पुराना गणतंत्र है। भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने सामंतवाद के खिलाफ लड़ाई छेड़ी और उसे ही चुनावी मुद्दा बनाया तथा सत्ताधारी भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस को पराजित किया। कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनते ही, केरल देश का इकलौता ऐसा राज्य बना जहाँ गैर-कांग्रेसी सरकार थी।

हालाँकि, केरल की कम्युनिस्ट सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी। केंद्र में बैठी काँग्रेस सरकार को यह कतई मंज़ूर नहीं था कि कोई उसकी पार्टी के राष्ट्रीय वर्चस्व को चुनौती दे। लिहाजा, उसने संविधान के अनुच्छेद 356 को लागू कर ईएमएस नंबूदिरीपाद के नेतृत्व वाली सरकार को बर्खास्त कर दिया। इस बीच, 1957 से 1959 के दौरान अपने छोटे से कार्यकाल में कम्युनिस्टों ने भूमि सुधार अध्यादेश और शिक्षा विधेयक को पेश कर दिया था, जिसने राज्य के लोगों के दिलों के तार को झंकृत कर दिया। उसकी झंकार आज भी ईश्वर के अपने देश में गूँज रही है।

साम्यवाद की अपील

केरल के तमाम इलाकों में साम्यवाद के फलने-फूलने का एक बड़ा कारण केंद्र में कांग्रेस की सरकार की ओर से राज्य की पहली कम्युनिस्ट सरकार की विवादास्पद बर्खास्तगी थी। कम्युनिस्टों द्वारा पेश किए गए भूमि सुधार अध्यादेश और विवादित शिक्षा बिल जैसे अभूतपूर्व कदमों को जनता ने हाथों-हाथ लिया। यही नहीं, 1960 और 1970 के दशक में किए गए भूमि सुधारों ने भी कम्युनिस्टों की लोकप्रियता में चार चाँद लगा दिए। ऐसा माना जाता है कि केरल के लोग देश भर में राजनीतिक रूप से सबसे अधिक जागरुक हैं। राज्य में मजदूर वर्गों के साथ तथाकथित भेदभाव और उनके अधिकारों की माँग को लेकर की जाने वाली हड़ताल और धरने नियमित राजनीतिक गतिविधियों में शामिल हैं। इसका ही परिणाम है कि केरल के श्रमिकों को देश में सबसे अधिक मजदूरी मिलती है।

शिक्षा के व्यापक प्रसार के कारण यहाँ के लोग दुनिया में भर में होने वाली राजनीतिक घटनाओं से वाकिफ रहते हैं। उन्हें इस जागरुकता का फायदा भी सबसे ज्यादा मिलता है। चाहे चाय की दुकान हो या फिर शहर के किसी बड़े इलाके में आलीशान घर का ड्रॉइंग रूम, चर्चा के मुद्दे आर्थिक मंदी के असर से लेकर दुनिया भर में अर्थव्यवस्थाओं की सुस्त रफ्तार और वैश्विकरण के प्रभाव ही रहते हैं। इस प्रकार की चर्चा अलग-अलग माहौल में, न केवल जोश और जज्बात से की जाती है, बल्कि उनमें विषयों की गहराई और विस्तार भी हैरान करने वाली होती है। हालाँकि, उच्च स्तर की राजनीतिक जागरुकता और समाज के विभिन्न वर्गों तक शिक्षा का प्रसार, वरदान की बजाए अभिषाप में बदलता दिख रहा है। इनके कारण ही अक्सर हड़ताल और बंदी होती है, जिससे राज्य में उत्पादन और औद्योगिकरण पर ब्रेक लग जाता है।

बेरोजगारी और पेट्रो डॉलर

शिक्षा के व्यापक प्रसार के साथ-साथ राज्य भर में नाम-मात्र के उत्पादन की वजह से, केरल में बेरोजगारी की दर अपेक्षाकृत बहुत ज्यादा है और अन्य राज्यों के मुकाबले इसकी औद्योगिक तरक्की डराने वाली हद तक कम रही है। राज्य में विनिर्माण और औद्योगिक क्षेत्र के विकास में वृद्धि की सुस्त रफ्तार का प्रमुख कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियों, भारतीय उद्योग और उद्यमियों द्वारा राज्य में नए उद्योग लगाने को लेकर घोर उदासीनता है। राज्य में बुनियादी ढाँचे के अभाव के साथ ही उन्हें यह डर है कि कम्युनिस्टों के आक्रामक रुख के कारण राज्य में कभी भी औद्योगिक अशांति फैल सकती है। फिर चाहे कम्युनिस्ट सरकार में हों या विपक्ष में। ना के बराबर औद्योगिक विकास और बेरोजगारी की उच्च दर के कारण योग्य स्त्रियों और पुरुषों के साथ ही राज्य से अकुशल श्रमिक भी पलायन कर भारत के विभिन्न हिस्सों और दूसरे देशों, खास तौर पर खाड़ी के देशों में जा रहे हैं। इस तस्वीर बदल दी और राज्य की अर्थ व्यवस्था जो पहले कृषि आधारित थी वह बाहर से आने वाले पैसे और सेवाएँ देने पर आधारित हो गई।

चूँकि बहुत बड़ी तादाद में कामकाजी लोग अपनी आजीविका के लिए दूसरे राज्यों और विदेश का रुख करते रहे हैं, इस कारण राज्य में नौकरी और रोजगार के अवसरों की कमी उतनी ज्यादा महसूस नहीं की जा रही है जितना कि पहले थी। केरल भारत के तमाम राज्यों में ऐसा चोटी का राज्य है जहाँ अनिवासी भारतीयों की ओर से सबसे अधिक धन प्राप्त होता है, जिसके कारण गरीबी का नामोनिशान न देखकर हैरानी होती है। व्यापार और पर्यटन के साथ ही इस प्रकार का धन राज्य सरकार के बजट में आय के प्रमुख स्रोतों में से एक है। विदेश से भारी मात्रा में आ रहे धन के कुछ अवांछित परिणाम भी हैं। खाड़ी के देशों से आने वाले पेट्रो डॉलर ने राज्य को एक बहुत विशाल उपभोक्ता बाजार बना दिया है। इस कारण ही, ऐसे अनेक व्यापारिक फर्म, दुकानें, एफएमसीजी डीलर, टूर ऑपरेटर और ट्रैवल कंपनियाँ हैं जो अकुशल लोगों को भी रोजगार देते हैं। अनिवासी भारतीयों की एक बड़ी आबादी और खाड़ी से आने वाले अकूत धन के कारण केरल के लोगों की क्रय क्षमता अच्छी। फलस्वरूप, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, पर्यटन और सेवा क्षेत्र में अच्छी तरक्की हो रही है। इसका नतीजा सेवा और व्यापार के क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा होते हैं, भले ही उनकी संख्या अधिक न हो।

Image for Communism in Kerala_1

दूसरा पहलू

राज्य की अर्थव्यवस्था के विदेशी धन, सेवा और पर्यटन पर आधारित हो जाने का दूसरा पहलू यह है कि आवश्यक सामग्रियों और उपभोक्ता सामानों की कीमतें बेहिसाब रूप से बढ़ जाती हैं। इसकी ज़िम्मेवारी सबसे अधिक अनिवासी भारतीयों की ओर से भेजे जाने वाले विदेश धन पर आती है। इस प्रकार की स्थिति के कारण राज्य की अर्थव्यवस्था अनेक प्रकार के नाजुक पहलुओं पर निर्भर हो चुकी है जैसे खाड़ी क्षेत्र और ऐसे अनेक देशों में शांति और सामान्य स्थिति के जारी रहने पर जो केरल से जाने वाले कामकाजियों के पसंदीदा पड़ाव हैं।

अनिश्चित कारकों पर आधारित अर्थव्यवस्था की अस्थिर प्रकृति, जिसमें सक्षम युवक और युवतियाँ योग्यता या बिना योग्यता के ही कमाई के अवसरों की तलाश में विदेश चले जाते हैं, और जिसका कारण राज्य में औद्योगिक व्यवस्था का अभाव है, राज्य में शराब की लत बड़े पैमाने पर दिखती है और खुदकुशी की दर भी बहुत ज्यादा है। यही वजह है कि केरल में भारत के किसी भी अन्य राज्य की तुलना में प्रति व्यक्ति शराब की खपत सबसे ज्यादा है, और देश में खुदकुशी की दर भी सबसे ज्यादा है।

राजनीतिक परिदृश्य

केरल की राजनीति में सत्ता का सौभाग्य कभी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंस (यूडीएफ) को मिला, तो कभी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) को मिला। सीपीआई (एम), सीपीआई तथा अन्य दलों वाला, एलडीएफ केरल में कांग्रेस का कट्टर प्रतिद्वंद्वी बना हुआ है। कांग्रेस को चुनौती देने वाला कोई और विकल्प भी नहीं है। कांग्रेस ने यूडीएफ का गठन 1970 के दशक में किया था, जिसने राज्य में अल्पसंख्यक ईसाइयों और मुसलमानों के अपने पारंपरिक वोट बैंक के साथ ही बहुसंख्यक हिंदू समुदाय के कुछ वर्गों के समर्थन से अपनी मजबूत पकड़ बना रखी है।

यह अपने आप को विभिन्न सामाजिक, जातीय और धार्मिक समूहों के गठबंधन के के साथ ही एलडीएफ के विरोध के तौर पर पेश करता है। एलडीएफ का नेतृत्व सीपीआई (एम) के हाथों में है और उसने सांप्रदायिक दलों के साथ गठबंधन न करने को अपना सिद्धांत बना रखा है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को कपटी छद्म धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने ‘सांप्रदायिक’ करार दे दिया और इस कारण ही इसे केरल के पूरी तरह से विभाजित समाज में अपनी पैठ बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ा। राजनीति में यूडीएफ और एलडीएफ बुरी तरह से हावी थे। अनेक वर्षों तक कठोर संघर्ष करने के बाद, यह धीरे-धीरे और निरंतर रूप से सामने आई, और अब राजनीतिक वर्चस्व के लिए इसे एक गंभीर दावेदार माना जा रहा है।

अस्थिर अर्थव्यवस्था

यूडीएफ और एलडीएफ ने बारी-बारी राज्य पर शासन किया और दोनों की ही मंशा महज किसी तरह सत्ता से चिपके रहना और हालात को जस का तस बनाकर रखना था। इस कारण केरल की हालत आज बहुत बुरी हो चुकी है। यहाँ न तो बुनियादी ढाँचा विकसित हुआ और ना ही औद्योगिक उपक्रमों की स्थापना की दूर-दूर तक कोई संभावना ही दिखती है। विदेश से आने वाले धन की बदौलत उपभोक्तावादी अर्थव्यवस्था को कब तक ज़िंदा रखा जा सकता है? खाड़ी में या पश्चिम एशिया में लड़ाई छिड़ जाए या राजनीतिक हालात बिगड़ जाएँ, तो पेट्रो डॉलरों की जीवनरेखा सूख जाएगी और तब देखिए कि कैसे राज्य की अर्थव्यवस्था दम तोड़ देगी। वैश्वीकरण और अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के खिलाफ बना राजनीतिक माहौल औद्योगिक कदमों की पृष्ठभूमि तैयार करता है जो स्वस्थ पर्यटन उद्योग के लिए शायद ही सकारात्मक होता है।

इसके बावजूद कि राज्य पूरी तरह से पर्यटन पर निर्भर है, यहाँ की सरकार शराब बंदी जैसे मामलों पर भ्रम पैदा करने वाले संदेश देती रहती है, जिसका विदेश और देश से आने वाले पर्यटकों की संख्या पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा, पर्यटन क्षेत्र की ओर से अर्जित राजस्व भी सेवा करों के माध्यम से विदेशी पर्यटन कंपनियों और अन्य भारतीय राज्यों के पास चला जाता है, जिससे यह उद्योग भी कमजोर हो जाता है।

सुदृढ़ अर्थव्यवस्था की आवश्यकता

आखिर सेवाओं और पर्यटन क्षेत्रों पर आधारित अर्थव्यवस्था ठोस औद्योगिक आधार पर निर्भर अर्थव्यवस्था की तुलना में कितनी सुदृढ़ और स्थिर हो सकती है? कम्युनिस्टों ने वैश्वीकरण और प्रत्यक्ष विदेश निवेश का लगातार विरोध किया है और उस में अड़ंगा डाला है। अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के खिलाफ रैलियाँ और धरना करने के साथ ही ज़हर भी उगला और इस प्रकार राज्य के लोगों को वैश्विक घटना का लाभ उठाने से रोक दिया।  कांग्रेस भी राज्य की सत्ता पर कब्जा जमाए रखने के लिए कम्युनिस्टों के साथ होड़ में है। सत्ता से चिपके रहने की उसमें असीम इच्छा है लेकिन राज्य की अर्थव्यवस्था के विकास के लिए उसने एक भी प्रगतिशील नीति नहीं बनाई है। हालात ऐसे हैं कि राज्य के एक तरफ कुआँ है तो दूसरी तरफ खाई। न तो राज्य से साम्यवाद की पकड़ कमजोर होने के संकेत मिल रहे हैं और ना ही उसे काँग्रेस की प्रतिकूल आर्थिक नीतियों और येन-केन प्रकारेण सरकार में बने रहने की चाल से मुक्ति मिलती दिख रही है।

 

लकीर का फकीर

केरल को अपनी आर्थिक दुर्गति से बाहर लाने और विकास तथा प्रगति की मुख्य धारा की राजनीति में लाने के लिए साम्यवाद के कागजी शेरों और कमजोर पड़ चुके कांग्रेस के कुचक्र के तोड़ना होगा। कुछ एक अपवादों को छोड़कर, जहाँ पूरा देश तरक्की के लिए मोदी के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा है, वहीं केरल आज भी साम्यवाद को एक राजनीतिक विचारधारा के तौर पर आजमा रहा है तथा कांग्रेस के साथ जुड़ा है। यहाँ यह याद दिलाना आवश्यक है कि पूरी दुनिया में साम्यवाद बुरी तरह विफल हो चुका है जबकि काँग्रेस के साथ भ्रष्टाचार उसी तरह जुड़ा जैसे मिली-जुली जाति के कुत्ते की पीठ पर मक्खियाँ भिनभिनाती हैं। काँग्रेस को अधिकांश राज्यों से धिक्कार कर निकाल दिया गया है और वह इतिहास के पन्नों में सिमट गई है। इस प्रकार, केरल आज भी लकीर का फकीर बना हुआ है और उसी जोश के साथ ऐसा प्रयास कर रहा है मानो कोई मरे हुए घोड़े को पीट-पीट कर जीवित करने की कोशिश कर रहा हो।

विरोधाभास

आज भी केरल को लोग काँग्रेस और साम्यवाद को अलविदा कहते दिखाई नहीं पड़ते, जबकि दोनों ही दल, बहुत पहले ही, किसी विचारधारा और लोकोन्मुखी नीतियों के अभाव में खोखले संगठन बन चुके हैं। आज की तारीख में, काँग्रेस का मुख्य मुद्दा धर्मनिरपेक्षता है, जिसके आधार पर वह इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग जैसे दल का, जो शेर की खाल ओढ़े गीदड़ की तरह सांप्रदायिक पार्टी है, और यूडीएफ के अन्य घटक दलों जैसे केरल काँग्रेस (एम), रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, जनता दल (यूनाटेड) और केरल काँग्रेस (जैकब) जैसे यूडीएफ के घटक दलों का समर्थन हासिल करती है। स्वयँ काँग्रेस पार्टी और उसके सहयोगियों में अल्पसंख्यक समुदाय के नेताओं का वर्चस्व है, ऐसे में उनकी ओर से धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करने का दावा विरोधाभासी है।

 

एलडीएफ का वोट बैंक

जहाँ तक एलडीएफ की बात है तो, वह हिंदू समुदाय के वोटों को, विशेष रूप से एज्हावा और अन्य पिछड़े वर्गों के वोट को जोड़ने में जुटी है। वह विभिन्न वर्गों में बँटे समाज में उनके आर्थिक और सामाजिक उत्थान के मुद्दों को उठाती रहती है। सीपीआई (एम) के राजनीतिक समीकरण में एक आश्चर्यजनक पहलू यह है कि अल्पसंख्यक मुसलमान और ईसाई समुदाय धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे को लेकर उसके दावों पर यकीन नहीं करते हैं। वे यूडीएफ के साथ जुड़े हैं।

इस बीच, धर्मनिरपेक्षता को बढ़ाने के नाम पर अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण का काँग्रेस का इतिहास ‘प्रभावशाली’ रहा है और इस कारण ही मुसलमान और ईसाई समुदाय बिना ईश्वर  वाली कम्युनिस्ट पार्टी की बजाए, उससे जुड़े हैं। हिंदू समुदाय का एक वर्ग जो सीपीआई (एम) की ओर से वर्ग संघर्ष और कम्युनिस्ट विचारधारा की बातों से ऊब चुका है, वह यूडीएफ को चुनता है, जिसे वह दो बुरी चीजों में कम बुरा मानता है। इस प्रकार दोनों फ्रंटों के बीच वोटों का सीधा बँटवारा हो जाता है। इनमें से दोनों ने ही विकास की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है।

तीसरा विकल्प सुनिए!

हालाँकि, पिछले कुछ समय से केरल के लोगों ने तीसरे राजनीतिक विकल्प – बीजेपी को आजमाने के प्रति थोड़ा रुझान दिखाया है। अरुविक्कर उप-चुनाव के साथ ही इस साल राज्य में हुए स्थानीय निकायों के चुनावों में बीजेपी के बेहतर प्रदर्शन ने साफ तौर पर दिखा दिया है कि उसकी चुनावी रणनीति एकदम सही है और यह पिछड़े एज्वाहा समुदाय, अनुसूचित जनजातियों और अगड़े नायर समुदाय के समर्थन से एलडीएफ की नींद उड़ा सकता है और अपने आप को यूडीएफ का प्रमुख प्रतिद्वंद्वी साबित कर सकता है। हिंदू समुदाय के वोटों को एकजुट कर और अल्पसंख्यक समुदायों को यह समझाने का सच्चा प्रयास कर कि उनका हित बीजेपी सरकार में अच्छी तरह पूरा होगा और वे अधिक सुरक्षित रहेंगे, यह अपने लिए एक जीत का ऐसा फॉर्मूला तैयार कर सकती है जिसमें यह राज्य के राजनीतिक परदृश्य के केंद्र में हो।

ऐसा होता है तो यूडीएफ और एलडीएफ को मिलकर भी वैचारिक रूप से सुदृढ़ बीजेपी का मुकाबला विकास की राजनीति के मुद्दे पर करना भारी पड़ेगा। केरल के लोगों के सामने राज्य में औद्योगिक और निर्माण क्षेत्रों को पटरी पर लाने के लिए बीजेपी को सत्ता में लाने का ही एकमात्र विकल्प है। इस वक्त धर्मनिरपेक्षता की खोखली बातों की नहीं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को लाने की जरूरत है।

आज केरल को तुष्टिकरण की राजनीति नहीं, बुनियादी ढाँचे और औद्योगिक विकास की आवश्यकता है। केरल के परिश्रमी लोगों ने अपने कठिन परिश्रम से अपने आप को दूर के देशों में मूल्यवान मानव संसाधन के रूप में परिवर्तित किया है। वे अब केरल को आगामी 2016 के चुनावों में सोच-विचार कर किए गए फैसले से केरल को बहुत आसानी से औद्योगिक विकास का केंद्र बना सकते हैं।  इसके लिए, उनसे बस यही उम्मीद की जाती है कि वे 2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए वोट करें, जो उनके राज्य को औद्योगिक और आर्थिक मोर्चे पर वह तरक्की दिलाएगी जिसकी नितांत आवश्यकता है। इसके साथ ही वह बेरोजगारी की भीषण और निरंतर समस्या का समाधान करेगी जिसका सामना वहाँ की युवा पीढ़ी कई दशकों से करती चली आ रही है।

Image for Communism in Kerala_2

79 thoughts on “केरल में साम्यवाद, और क्यों लोगों को बीजेपी सरकार के लिए वोट करना चाहिए”

  1. Can be agreed to some level but state BJP unit is not very strong and they are not on common grounds. Unless top level leaders of national unit delegate more responsibility and trust on Kerala unit they will ot be able to communicate with public.

  2. Peasants’ cause made many political parties thrive throughout the orld. It is known to all how communists of west bengal ate up all resources themselves and left Bengalies in misery. Development is answer to all problems.

  3. Don’t talk about literacy rate or infant mortality rate because they are related with education which is a plus point in Kerala as we have a very inclusive law in this regard. Speak about poverty, faith conversion and unemployment of Kerala.

  4. Very true that remittances of Kerala from other countries specially the Gulf and US and UK drive its economy and market. It is time that indigenous industries flourish in Kerala and people are stopped from migrating.

  5. voters have to take a decision, to have or not to have, economic development of State. according they should vote for bjp.

  6. These are in fact enormous ideas in concerning blogging. You have touched some nice things here. Any way keep up writing.

  7. The next time I read a blog, I hope that it does not fail me as much as this one. After all, I know it was my choice to read, nonetheless I actually thought you would probably have something helpful to talk about. All I hear is a bunch of whining about something that you could fix if you weren’t too busy seeking attention.

  8. Fantastic put up, very informative. I wonder why the opposite experts of this sector do not understand this. You must continue your writing. I am confident, you have a huge readers base already.

  9. Really.. thanks for starting this up. This web site is one thing that is required on the web, someone with a bit of originality.

  10. You definitely realize how to bring an issue to light and make it important. More people should read this and understand this side of your story.

  11. I wish to state my complements to the hard work you have done to incorporate so much of detail about every information.

  12. Radharaman bhardwaj

    Thank you for some other magnificent post. Where else could anybody get that kind of information in such a perfect manner of writing. I have a presentation subsequent week, and I am on the look for such information.

  13. Excellent weblog right here. Also your site loads up very fast. I want my website loaded up as quickly as yours lol

  14. I am often to blogging and i really appreciate your content. The article has actually peaks my interest. I am going to bookmark your web site and keep checking for brand new information.

  15. Hello, its my first time to commenting any post. But I could not stop myself from commenting on reading through such a sensible piece of writing.

  16. Having read this I thought it was extremely enlightening. I appreciate you finding the time and energy to put this short article together. I once again find myself spending a significant amount of time both reading and leaving comments. But so what, it was still worthwhile!|

  17. I was extremely pleased to find this web site. I need to to thank you for ones time due to this wonderful read.. I definitely really liked every little bit of it and I have you bookmarked to look at new information on your website.

  18. I am very happy to find this web site. I wanted to thank you for your time due to this fantastic read. I definitely liked every little bit of it and i also have you saved to fav to see new information in your site.

  19. Ahaa, its pleasant dialogue about this piece of writing at this place at this weblog, I have read all that, so at this time me also commenting here.

  20. Can I just say what a relief to discover someone that actually understands what they are talking about over the internet. You definitely understand how to bring a problem to light and make it important. More and more people really need to read this and understand this side of the story. I was surprised that you aren’t more popular since you most certainly possess the gift.

  21. I visit daily a few web sites and sites to read articles or reviews, however this blog provides feature based articles.

  22. I have learn several just right stuff here. Certainly price bookmarking for revisiting. I wonder how much effort you set to create such a fantastic informative web site.

  23. Thank you for the introduction to the new website. I will be re-visiting it many times, but on a fast run-through it looks really great.

  24. I am genuinely glad to glance at this webpage posts which consists of tons of useful facts, thanks for providing such statistics.

  25. Dilip Singh panwar

    Hi there to every one, since I am really eager of reading this weblogs post to be updated daily. It contains fastidious stuff.

  26. Shantanu kishore

    This is really interesting, You are a very skilled blogger. I have joined your rss feed and look forward to seeking more of your great post. Also, I have shared your web site in my social networks.

  27. You are very intelligent. You already know the significance in the case of this matter. You post consider numerous angles of information. Your own stuff is excellent.

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top